उखड़ गए टेंट-तंबू, गाड़ियों में लद गया सामान, पर राकेश टिकैट बोले- हम नहीं जायेंगे....
Kisan Andolan The End
Kisan Andolan The End : तीनों कृषि कानूनों की वापसी और अन्य मांगों पर केंद्र सरकार के साथ सहमति बनने के बाद एक साल से ज्यादा समय तक चला किसान आंदोलन अब खत्म हो गया है| संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा हाल ही में किसान आंदोलन को ख़त्म करने का निर्णय लिया गया था और ऐलान किया गया था कि 11 दिसम्बर से आंदोलनकारी किसान अपने-अपने घर जाना शुरू कर देंगे| बतादें कि, आज 11 दिसम्बर है और अब किसान आंदोलन स्थल से टेंट-तंबू सब उखड़ गए हैं जो रह गए हैं वो उखड़ रहे हैं| आंदोलनकारी किसान अपना- अपना सामान गाड़ियों में लाद अपने-अपने घर लौट रहे हैं| इसके साथ ही आंदोलनकारी किसान सरकार से अपनी बात मनवा लेने पर बेहद ज्यादा खुश हैं| आंदोलनकारी किसानों द्वारा इसका जश्न भी मनाया जा रहा है|
पर राकेश टिकैट बोले- हम नहीं जायेंगे....
इधर, किसान आंदोलन खत्म होने के बाद आंदोलनकारी किसान तो अपने-अपने घर जा रहे हैं लेकिन अभी भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत घर नहीं जायेंगे| दरअसल, ऐसा नहीं है कि राकेश टिकैत अपना आंदोलन जारी रखने की बात कह रहे हैं| टिकैत का कहना है कि देश में कई जगहों पर किसान आंदोलन चल रहा था| जब इन सारी जगहों से किसान अपने-अपने घर लौट जायँगे तब आखिर में वह 15 दिसंबर को अपने घर जाएंगे|
गुरु पर्व पर हुई थी किसान आंदोलन की जीत ....
दरअसल, केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि संबंधी कानूनों पर किसान नेताओं और सरकार की 11 बार बैठक हुई लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला| बात ये थी कि किसान नेताओं का कहना था कि कानूनों को रद्द किया जाए जबकि केंद्र का कहना था कि वो कानून में संशोधन कर सकती है लेकिन वापस नहीं ले सकती है। लेकिन जब सरकार ने देखा कि किसान आंदोलन ऐसे खत्म नहीं होने वाला तो पीएम मोदी ने 19 नवंबर को प्रकाश पर्व पर तीनों कृषि संबंधी कानून को वापस लेने की घोषणा कर दी और बाद में कानूनी प्रक्रिया के साथ इन कानूनों को रद्द कर दिया| लेकिन, इसके बाद आंदोलन खत्म करने को लेकर किसान आंदोलन की तरफ से और भी मांगें सरकार के सामने रख दी गईं| जिसे लेकर भी सरकार मान गई और तब जाके अब किसान आंदोलन खत्म हो गया|
सरकार को इसलिए और उठाना पड़ा ऐसा कदम....
माना जा रहा है कि, इस वक्त अगर उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव न होना होता तो सरकार शायद किसान आंदोलन की बातें न मानती| लेकिन चुनाव में अपने नुकसान को भांपते हुए उसने इतना बड़ा फैसला लिया|